इस पोस्ट में आप सभी: ईश्वर की पहचान कैसे हो सकती है, ईश्वर क्या है ईश्वर कहां है, ईश्वर कौन है, ईश्वर एक है किसने कहा, ईश्वर का स्वरूप, अल्लाह और ईश्वर कौन है, सबसे बड़ा ईश्वर कौन है ईश्वर है या नहीं, ईश्वर की पहचान कैसे हो सकती है, ईश्वर की शक्ति क्या है आदि सभी प्रश्नों का जवाब पढ़ेंगे।
क्या ईश्वर है ? क्या ईश्वर को हम देख सकते है ? ईश्वर कहा है ?
एक ऐसी अपरिभाषेय रहस्यमय शक्ति है जो सर्वत्र व्याप्त है। मैं उसका अनुभव करता हूं, हालांकि वह दिखाई नहीं देती। यह अदृश्य शक्ति महसूस तो होती है लेकिन उसका कोई प्रमाण देना संभव नहीं है, क्योंकि यह इंद्रियग्राह्य वस्तुओं से सर्वथा भिन्न है। यह इंद्रियातीत है। लेकिन ईश्वर के अस्तित्व का थोड़ा-सा तर्क दिया जा सकता है।
मुझे एक क्षीण अनुभूति होती है कि जहां मेरे चारों ओर मौजूद सभी चीज़ें निरंतर परिवर्तनशील हैं, निरंतर नाशवान हैं, वहां इन सारे परिवर्तनों के पीछे एक ऐसी जीवंत शक्ति है जो परिवर्तनरहित है, जो सबको धारण करती है, सबकी सृष्टि करती है, संहार करती है, और पुन: सृजन करती है। सभी को अनुप्राणित करने वाली यह शक्ति अथवा आत्मा ही ईश्वर है। और चूंकि केवल इंद्रियों से ग्राह्य अन्य कोई वस्तु अनश्वर नहीं हो सकती और न होगी, इसलिए केवल ईश्वर ही अनश्वर है ।
यह शक्ति उपकारी है अथवा अपकारी ? मुझे यह विशुद्ध रूप से उपकारी लगती है । कारण कि, मैं पाता हूं कि मृत्यु के बीच जीवन का सातत्य है, झूठ के बीच सत्य का सातत्य है और अंधकार के बीच प्रकाश का सातत्य है । इसलिए मैं समझता हूं कि ईश्वर जीवन है, सत्य है, प्रकाश है। वह साक्षात प्रेम है। वही सर्वोच्च शुभ है।
मैं यह स्वीकार करता हूं कि मैं .... तर्क के द्वारा .... तुमको आश्वस्त नहीं कर सकता। आस्था तर्क से ऊपर है। मैं यही परामर्श दे सकता हूं....कि असंभव को संभव बनाने का प्रयास न करो। दुनिया में बुराई क्यों है, इसका कोई तर्कपूर्ण उत्तर मैं नहीं दे सकता । ऐसा प्रयास करना ईश्वर की बराबरी करना होगा। अतः मैं पूरी विनम्रता के साथ बुराई के अस्तित्व को मान लेता हूं, और कहता हूँ कि ईश्वर दीर्घकाल से पीड़ा भोग रहा है और धैर्य प्रदर्शित कर रहा है, क्योंकि उसने दुनिया में बुराई को चलते रहने की अनुमति दी है। मैं जानता हूं कि ईश्वर में बुराई का लेश भी नहीं है, पर फिर भी यदि दुनिया में बुराई है तो उसका सर्जक वही है, यद्यपि वह उसे छू नहीं सकती।
मैं यह भी जानता हूं कि यदि मैं बुराई से न लडूं और इस संघर्ष में प्राणों की बाजी न लगा दूं तो मैं कभी ईश्वर को नहीं जान पाऊंगा। मेरे साधारण और सीमित अनुभव ने मेरे इस विश्वास को और भी दृढ़ कर दिया है। मैं जितना ही शुद्ध बनने का प्रयास करता हूं, अपने को उतना ही ईश्वर के निकट अनुभव करता हूं । मेरी आस्था जब एक बहाना मात्र नहीं रह जाएगी, जैसी कि वह आज है, अपितु हिमालय की तरह अड़िग और उसके शिखरों पर मंडित हिम के समान धवल तथा प्रकाशमान हो जाएगी तो मैं ईश्वर के कितने निकट पहुंच पाऊंगा।